अध्याय 1: बातचीत
इसे तो सभी स्वीकार करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य को दी हैं, उनमें वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल रहतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता । सब लोग लुंज-पुंज से हो मानो कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी दूसरी-दूसरी इंद्रियों के द्वारा करते, उसे अवाक् होने के कारण, आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह-सुन सकते । इस वाक्शक्ति के अनेक फायदों में 'स्पीच' वक्तृता और बातचीत दोनों हैं। किंतु स्पीच से बातचीत का ढंग ही निराला है। बातचीत में वक्ता को नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता है कि वह बड़े अंदाज से गिन-गिनकर पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्याहवाचन या नांदीपाठ की भाँति घड़ियों तकं साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज एंड जेंटिलमेन की बहुत सी स्तुति करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे। जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली बात वक्ता महाशय के मुख से निकली कि ताली ध्वनि से कमरा गूँज उठा। इसलिए वक्ता को खामख्वाह ढूँढ़कर क...