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जूठन

....एक रोज हेडमास्टर कलीराम ने अपने कमरे में बुलाकर पूछा, "क्या नाम है बे तेरा ?" "ओमप्रकाश", मैंने डरते-डरते धीमे स्वर में अपना नाम बताया। हेडमास्टर को देखते ही बच्चे सहम जाते थे। पूरे स्कूल में उनकी दहशत थी । "चूहड़े का है ?" हेडमास्टर का दूसरा सवाल उछला । "जी।" "ठीक है... वह जो सामने शीशम का पेड़ खड़ा है, उस पर चढ़ जा और टहनियाँ तोड़ के झाड़ बणा ले, पत्तों वाली झाड़ बणाना। और पूरे स्कूल कू ऐसा चमका दे जैसा सीसा। तेरा तो यो खानदानी काम है। जा फटाफट लग जा काम पे।" हेडमास्टर के आदेश पर मैंने कमरे, बरामदे साफ कर दिए, तभी वे खुद चलकर आए और बोले, "इसके बाद मैदान भी साफ कर दे।" लंबा-चौड़ा मैदान मेरे वजूद से कई गुना बड़ा था। जिसे साफ करने से मेरी कमर दर्द करने लगी थी। धूल से चेहरा, सिर अट गया था। मुँह के भीतर धूल घुस गई थी। मेरी कक्षा में बाकी बच्चे पढ़ रहे थे और मैं झाडू लगा रहा था। हेडमास्टर अपने कमरे में बैठे थे लेकिन निगाह मुझ पर टिकी हुई थी। पानी पीने तक की इजाजत नहीं थी। पूरा दिन मैं झाड़ लगाता रहा। तमाम अनुभवों के बीच कभी इत...

अध्याय 4: अर्धनारीश्वर (रामधारी सिंह दिनकर)

अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का कल्पित रूप है, जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का होता है। एक ही मूर्ति को दो आँखें, एक रसमयौ और दूसरी विकराल एक ही मूर्ति की दो भुजाएँ, एक त्रिशूल उठाए और दूसरी की पहुँची पर चूड़ि‌याँ और उँगलियाँ अलक्तक से लाल; एवं एक ही मूर्ति के दो पाँव, एक जरीदार साड़ी से आवृत और दूसरा बाचंबर से ढँका हुआ ।                                                                  एक हाथ में डमरू, एक में वीणा परम उदार ।                                                                       एक नयन में गरल, एक में संजीवन की धार ।            ...

अध्याय 3: संपूर्ण क्रांति (जयप्रकाश नारायण)

 बिहार प्रदेश 'छात्र संघर्ष समिति' के मेरे युवक साथियो, बिहार प्रदेश के असंख्य नागरिक भाइयो और बहनो । अभी-अभी रेणु जी ने जो कविता पढ़ी, अनुरोध तो वास्तव में उनका था, सुनाना तो वह चाहते थे; मुझसे पूछा गया कि वह कविता सुना दें या नहीं; मैं ने स्वीकार किया। लेकिन उसने बहुत सारी स्मृतियाँ, और अभी हाल की बहुत दुखद स्मृति को जाग्रत कर दिया है। इससे हृदय भर उठा है। आपको शायद मालूम न होगा कि जब मैं वेल्लोर अस्पताल के लिए रवाना हुआ था, तो जाते समय मद्रास में दो दिन अपने मित्र श्री ईश्वर अय्यर के साथ रुका था। वहाँ दिनकर जी, गंगाबाबू मिलने आए थे। बल्कि, गंगाबाबू तो साथ ही रहते थे; और दिनकर जी बड़े प्रसन्न दिखे। उन्होंने अभी हाल की अपनी कुछ कविताएँ सुनाई और मुझसे कहा कि आपने जो आंदोलन शुरू किया है, जितनी मेरी आशाएँ आपसे लगी थीं उन सबकी पूर्ति, आपके इस आंदोलन में, इस नए आवाहन में, देश के तरुणों का आपने जो किया है, मैं देखता हूँ। (तालियाँ) तालियाँ हरगिज न बजाइए, मेरी बात चुपचाप सुनिए । अब मेरे मुँह से आप हुंकार नहीं सुनेंगे। लेकिन जो कुछ विचार मैं आपसे कहूँगा वे विचार हुंकारों से भरे होंगे। ...

अध्याय 2: उसने कहा था

 बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबूकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट संबंध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अँगुलियों के पोरों को चींथकर अपने ही को सताया हुआ बताते हैं और संसार भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले तंग चक्करदार गलियों में, हर एक लड्‌ढीवाले के लिए ठहरकर सब्र का समुद्र उमड़ाकर 'बचो खालसाजी' 'हटो भाईजी' 'ठहरना भाई' 'आने दो लालाजी' 'हटो बाछा' करते हुए सफेद फेटों, खच्चरों और बतकों, गन्ने और खोमचे और भारेवालों के जंगल में राह खेते हैं। क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना पड़े। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती ही नहीं; चलती है, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती है। यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी दे...

अध्याय 1: बातचीत

 इसे तो सभी स्वीकार करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य को दी हैं, उनमें वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल रहतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता । सब लोग लुंज-पुंज से हो मानो कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी दूसरी-दूसरी इंद्रियों के द्वारा करते, उसे अवाक् होने के कारण, आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह-सुन सकते । इस वाक्शक्ति के अनेक फायदों में 'स्पीच' वक्तृता और बातचीत दोनों हैं। किंतु स्पीच से बातचीत का ढंग ही निराला है। बातचीत में वक्ता को नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता है कि वह बड़े अंदाज से गिन-गिनकर पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्याहवाचन या नांदीपाठ की भाँति घड़ियों तकं साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज एंड जेंटिलमेन की बहुत सी स्तुति करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे। जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली बात वक्ता महाशय के मुख से निकली कि ताली ध्वनि से कमरा गूँज उठा। इसलिए वक्ता को खामख्वाह ढूँढ़कर क...

अध्याय 13: शिक्षा (जे० कृष्णमूर्ति)

 यदि आपने कभी अपने आपसे यह पूछा हो कि शिक्षा का अर्थ क्या है तो यह मेरे लिए सचमुच आश्चर्य की बात होगी। आप विद्यालय क्यों जाते हैं? आप विविध विषय क्यों पढ़ते हैं ? क्यों आप परीक्षाएँ उत्तीर्ण करते हैं, और ऊँचा स्थान प्राप्त करने के लिए दूसरों के साथ स्पर्धा करते हैं? आखिर क्या अर्थ है इस तथाकथित शिक्षा का ? यह सब कुछ क्या है ? यह सचमुच अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-केवल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अपितु माता-पिता के लिए, शिक्षकों के लिए और उन समस्त व्यक्तियों के लिए जो इस वसुधा से प्रेम करते हैं। शिक्षित होने के लिए हम संघर्ष क्यों करते हैं ? हम कुछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लें, किसी उद्योग में लग जाएँ, क्या शिक्षा का बस इतना ही कार्य है अथवा शिक्षा का कार्य है कि वह हमें बचपन से ही जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया समझने में सहायता करे ? कुछ उद्योग करना और अपनी जीविका कमाना जरूरी है; लेकिन क्या यही सब कुछ है ? क्या हम केवल इसीलिए शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ? निस्संदेह केवल उद्योग या कोई व्यवसाय ही जीवन नहीं है। जीवन बड़ा अद्भुत है, यह असीम और अगाध है, यह अनंत रहस्यों को लिए हुए है, यह एक विश...